छत्तीसगढ़ी
भाखा (Chhhattisgarhi
language) | Chhattisgarhi grammar |Chhattisgarhi Vyakaran
28 नवम्बर 2007 को
छत्तीसगढ़ की विधानसभा के छत्तीसगढ़ राजभाषा संशोधन विधेयक 2007 पारित
किया । इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) को
राजभाषा का दर्जा मिल गया । आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) को भारतीय भाषाओं की 8वीं अनुसूची
में शामिल नहीं किया गया है एवं पूर्वी हिन्दी की समर्थ विभाषा माना गया । छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) बोली का विकास अर्धमागधी अपभ्रंश
से हुआ है। प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ को
दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था एवं यहां बोली जाने वाली भाषा ”कोसली” कहलाती थी।
इसका प्राचीनतम साक्ष्य दंतेवाड़ा के शिलालेख में मिलता है।
छत्तीसगढ़ के संबंध में
विद्वान के मत–
डॉं क्रांतिकुमार जैन – अपनी
पुस्तक में छत्तीसगढी बोली, व्याकरण और कोश में छत्तीसगढ़ी को भौगोलिक आधार पर
तीन भागों में विभाजित किया है।
1- बस्तर के पठार में बोली जाने
वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
2- छत्तीसगढ़ के मैदान में बोली जाने
वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
3-सतपुड़ा की उच्च समभूमि में बोली
जाने वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
डॉ नरेन्द्र देव वर्मा – अपने शोध
ग्रंथ में छत्तीसगढ़ी के 10 बोलीगत विभेदों का उल्लेख निम्नानुसार किया
है–
- छत्तीसगढ़ी, रायपुरी, बिलासपुरी,
- खल्टाही
- लरिया
- सरगुजिहा
- सदरी कोरवा
- बैगानी
- बिंझवारी
- कलंगा
- भुलिया
- बस्तरी या हल्बा
डॉ रमेशचन्द्र महरोत्रा
ने छत्तीसगढ़ी की उपबोलियों पर शोध कर भौगोलिक आधापर पर 5 क्षेत्रीय
रूप में वर्गीकृत किया है–
- केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी या
मूल छत्तीसगढ़ी– बिलासपुरी, रायपुरी, बैगानी,कवर्धाई, कांकेरी,खैरागढ़ी, देवरिया। - पश्चिमी छत्तीसढ़ी– खल्टाही, कमारी, मरारी,
- उत्तरी छत्तीसगढ़ी– सरगुजिरहा, सदरी
कोरवा (नागपुरिया), पंडो, नागवंशी। - दक्षिणी छत्तीसगढ़ी– हल्बी (बस्तरी), धाकड़, मिरगानी
डॉ रमेशचन्द्र महरोत्रा
ने छत्तीसगढ़ी के विभिन्न उपबोलियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है।
तथ्य– भाषायी
जनगणना 2011 के
अनुसार छत्तीसगढ़ में मूल छत्तीसगढ़ी बोलने वालों की जनसंख्या 1,58,12,522 है।
- 1- केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी–
यह परिनिष्ठित छत्तीसगढ़ी
बिलासपुर, रायपुर
एवं दुर्ग संभाग में सर्वाधिक बोली जाती है।
इसमें मुख्य रूप से– बिलासपुर, मुंगेली,जांजगीर – चांपा, रायगढ़, कवर्धा, राजनांदगांव, दुर्ग, बेमेतरा, रायपुर,बलौदा
बाजार और धमतरी जिले शामिल है। इसके साथ बस्तर संभाग में कांकेर जिला में भी केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी
का क्षेत्र है।
रायपुर दुर्ग के आसपास एवं
बिलासपुर, जांजगीर
चांपा के आसपास बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी में कुछ भिन्नताएं है जैसे –
- रायगढ़– मोर नॉव
रामलाल ए। - रायपुर– मोर नॉव रामलाल
हवै । - बिलासपुर–मोर नॉव
रामलाल हय। । - जांजगीर चांपा– मोर नॉव
रामलाल हावै ।
1-केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी में बोली
जाने वाली बोली–
बिलासपुरी– बिलासपुर, रायपुरी, जांजगीर
चांपा वं रायगढ़ जिलो में बोली जाती है।
रायपुरी– रायपुर, धमतरी, बलौदाबाजार, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, राजनांदगाव
जिलों में बोजी जाने वाली छत्तीसगढ़ी रायपुरी है।
बैगानी– बैगा
जनजाति द्वारा बोली जाती है यह बोली कबीरधाम, बिलासपुर, एंव राजनांदगाव जिले में बैंगा जनजाति द्वारा
बोजी जाती है। इस बोली पर मराठी, बुंदेली और गोंडी का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित
होता है।
बैगानी बोली का विधि वत
अध्ययन वेरियर एल्विन 1989 ने द बैगा The Baiga पुस्तक
में किया है।
कवर्धाई– कबीरधाम जिले की बोली है।
कांकेरी– यह कांकेर जिले में बोली जाती है। कांकेरी बोली पर हल्बी
और भतरी का प्रभाव है।
खैरागढ़ी– राजनांदगांव जिला में खैरागढ़ के आसपास बोली जाने वाली
छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ी कहा जाता है।
देवरिया– यह देवार जाति द्वारा बोली जाती है। ये लोग रायपुर, धमतरी और महासमुंद जिले में रहते हैं।
2- पश्चिमी छत्तीसगढ़ी–
छत्तीसगढ
के पश्चिम दिशा में बोली जाने वाली भाषा है इसमें बिलासपुर, मुंगेली, कबीरधाम ,एवं राजनांदगाव जिले का पश्चिमी सीमांत क्षेत्र शामिल है
जो मध्यप्रदेश के बालाघाट से मिलती है।
प्रमुख
बोलियां–
खल्टाही– इसमें बिलासपुर, मुंगेली, कबीरधाम, राजनांदगांव जिले के पश्चिमी सीमांत क्षेत्र शामिल है खल्टाही
बोली मे मराठी और बुंदेली का प्रभाव है। यह पश्चिमी छत्तीसगढ़ी की सबसे प्रमुख
बोली है।
कमारी– कमार जनजाति द्वारा बोली जाने वाली कमारी कहलाती है।
महासमुन्द्र गरियाबंद, धमतरी जिलें के जंगलों के आसपास निवासरत है। कमारी में
हल्बी और ओडि़या के तत्व घुले– मिले हैं।
कमारी
बोली का अध्ययन श्यामाचरण दूबे 1951 ने द कमार नामक पुस्तक में किया है।
मरारी– मरार जाति के द्वारा बोली जाती है। मरार जाति के लोग
छत्तीसगढ़ के पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों में निवासरत है। इस बोली पर बुंदेली और
मराठी का प्रभाव है।
उत्तरी
छत्तीसगढ़ी–
छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र
सतपुड़ा पर्वत् श्रृंखला की उच्च समभूमि में बोली जाती है। इसमें कोरिया, सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर,जशपुर,रायगढ़
जिले का धरमजयगढ़ एंव कोरबा जिले का उत्तरी सीमांत क्षेत्र शामिल है।
प्रमुख बोलिया– सरगुजिहा, सदरी–कोरवा (नागपुरिहा), पंडो।
1- सरगुजिहा– सरगुजा
रियासत में उपयोग कि जाती है। मुख्य रूप से कोरिया, सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर,एवं
जशपुर, जिलामें
बोली जाती है। सरगुजा क्षेत्र के उत्तर
में उत्तरप्रदेश, उत्तर
पश्चिम में मध्यप्रदेश, उत्तर
पूर्व में झारखण्ड से जुड़ा हुआ है इस कारण सरगुजिहा पर अवधी, भोजपुरी, बघेली
बोलियों का प्रभाव है। इसके साथ ही द्रविड़ भाषा की बोली कुडुख उरांव बोलि का भी
प्रयोग किया जाता है।
जनगणना के अनुसार
छत्तीसगढ़ में सरगुजिहा बोलने वालों की कुल जनसंख्या 17,37,224 है।
2- सदरी कोरवा (नागपुरिहा)-यहा
कोरवा जनजाति के द्वारा बोला जाता है। झारखंड के छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में भोजपुरी एवं छत्तीसगढ़ी
की मिश्रित उपबोली का प्रचलन है इसे सदरी कोरवा बोली के नाम से जाना जाता है। इसे
बोली को बोलने वाले लोग जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, एवं कोरबा जिले में रहते हैं। इस बोली की
सरगुजिहा से काफी समानता है। भाषायी जनगणना 2011 के
अनुसार छत्तीसगढ़ में सदरी बोलने वालों की कुल जनसंख्या 6;47154 है।
3- पंडो– यह बोली
पंडो जनजाति द्वारा बोली जाती है इसके बोलने वाले सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, और
रायगढ़ जिले में निवासरत हैं।
4- नागवंशी– यह बोली
सरगुजा एंव रायगढ़ जिले में बोली जाती है।
4- पूर्वी छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) – रायगढ़ महासमुन्द एवं
गरियाबंद जिले में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी को पूर्वी छत्तीसगढ़ी के नाम से
जानते हैं। बलौदाबाजार एवं रायपुर जिला मे भी पूर्वी छत्तीसगढ़ी का स्पष्ट
प्रभाव है। इस बोलि में उड़ीया राज्य स्थित होने के कारण पूर्वी छत्तीसगढ़ी में
उडि़या का प्रभाव है।
पूर्वी छत्तीसगढ़ी की प्रमुख बोलिया– लरिया, बिंझवारी, कलंगा,
भूलिया।
।– लरिया– महासमुन्द्
, गरियाबंद
एवं रायगढ़ जिले में बोली जाती है इसमें उडि़या भाषा का प्रभाव है।
2- बिंझवारी– रायपुर, बलौदाबाजार
एव रायगढ़ जिले के सारंगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। यह बिंझवार
जनजाति द्वारा बोली जाती है और इसमें उडि़या भाषा का प्रभाव है।
3- कलंगा– रायपुर
जिले के पूर्वी भाग और रायगढ़ जिले के दक्षिणी भाग में यह बोली बोली जाती है। इस
पर उडि़या भाषा का पर्याप्त प्रभाव है।
4-भूलिया– उड़ीसा
से लगे पूर्वी छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले में यह बोली जाती है। इसमें उडि़या का
प्रभाव देखने को मिलता है।
5- दक्षिणी छत्तीसगढ़ी–
बस्तर संभाग के सभी सातों
जिलों कांकेर, कोंडागांव, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर
एवं नारायणपुर में दक्षिणी छत्तीसगढ़ी की बोलिया उपयोग कि जाती है। ये बोलिया
पश्चिम में मराठी, पूर्व
में उडि़या और दक्षिण में गोंडी से प्रभावित हैं।
इसके अंतर्गत आने वाली
बोलिया–
हल्बी – बस्तरी, धाकड़,
मिरगानी।
1- हल्बी– यह हल्बा
जनजाति की प्रमुख बोली है । हल्बी बस्तरी बस्तर संभाग की संपर्क भाषा है हल्बी
को बस्तर संभाग का लिंग्वाफ्रेंका कहा जाता है। इसको बोलने वाले जिले में नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बस्तर, कोंडागांव, कांकेर शामिल
है। हल्बी में
ओडि़या , मराठी और केन्द्रीय
छत्तीसगढ़ी का मिश्रण है। यह बोली आर्य भाषा परिवार की बोली हे किन्तु इसमें
द्रविड़ भाषा के भी शब्द पाये जाते हैं। भाषायी जनगणना 2011 के
अनुसार छत्तीसगढ़ हल्बी बोलने वालों की कुल जनसंख्या 7,06,304 है।
2-धाकड़– यह
जगदलपुर क्षेत्रों में धाकड़ जनजाति द्वारा बोली जाती है।
3-मिरगानी– यह बस्तर, कोंडागांव, एवं
सुकमा जिले के पूर्वी भाग में उड़ीसा से लगे क्षेत्रों में मिरगान जाति द्वारा
बोली जाती है।
जनजातिय बोली हल्बी और
गाड़ी में प्रकाशित होने वाला प्रदेश का एकमात्र साप्ताहिक अखबार ”बस्तरिया” जगदलपुर
से प्रकाशित होता है।
स्त्रोत / संदर्भ
ग्रंथ–
- डॉ विनय कुमार पाठक,एवं डॉ
विनोद कुमार वर्मा – छ्तीसगढ़
का सम्पूर्ण व्याकरण - छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी
ग्रंथ अकादमी , रायपुर - राज्य शैक्षिक अनुसंधान
और प्रशिक्षण परिषद, रायपुर– छत्तीसगढ़ी
शब्दकोश।
छत्तीसगढ़ी व्याकरण |Chhattisgarhi Grammar
छ्त्तीसगढ़ी संज्ञा–Chhattisgarhi Noun
संज्ञा
उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे किसी विशेष, भाव और जीव के नाम का बोध हो।
।– विरेन्द्र इस्कूल ले आवत हे ।
2- आमा खट्– मिट्ठा हे ।
3- मंजूर नाचत हवय ।
उपर
दिये वाक्यों में विरेन्द्र व्यक्ति का नाम है।इस्कूल पढने के स्थान का नाम
है। आमा एक फल का नाम है। मंजूर एक पक्षी का नाम है। खट्– मिट्ठा एक गुण है। ये सब प्राणी , पदार्थ, पक्षी, स्थान भाव आदि के नाम हैं। इसकारण् किसी भी नाम को
संज्ञा कहते है।
छ्त्तीसगढ़ी संज्ञा उदाहरण– समारू, रेयपुर, आमा, मंजूर, दलहा
पहाड़, इंदिरावती
आदि।
घर, आकास, गंगा,देवता, पीला, अक्छर, बल, जादू इत्यादि।
छ्त्तीसगढ़ी
संज्ञा के भेद Types Of
Chhattisgarhi noun-
हिंदी की तरह पांच भेद है–
- व्यक्तिवाचक संज्ञा
- जातिवाचक संज्ञा
- द्रव्यवाचक संज्ञा
- समूह वाचक संज्ञा
- भाववाचक संज्ञा
व्यक्तिवाचक संज्ञा –
जिस शब्द से किसी एक वस्तु या व्यक्ति का बोध हो, उसे व्यक्ति वाचक संज्ञा कहते हैं–
व्यक्तियों के नाम– खोलबहरा, सोमारू, दुकालू, जेठू आदि।
देशों के नाम– भारत, अमेरिका, बांग्लादेश, जापान आदि।
नदियों के नाम– शिवनाथ, महानदी, पैरी, अरपा,
शहरों के नाम– रायगढ़ , बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग
गांव/शहरों के नाम– दंतेवाड़ा, डोंगरगढ़, रजिम, सिरपुर, रतनपुर, डथरा, मालखरोदा, पोता, फगुरम ।
पुस्तकों के नाम– रामायण , महाभारत, गीता।
त्योहारों के नाम– हरेली, भोजली, तीजा, पोरा, कमरछठ, छेरछेरा, होली।
फलों के नाम– आमा, अमली, बोइर, कलिंदर, अंगूर।
समाचार पत्रों के नाम– नवभारत, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, हरिभूमि, पत्रिका, लोकस्वर, इवनिंग टाइम्स।
महीनों व दिनों के नाम– जनवरी, फरवरी, चइत, बइसाख, जेठ, पूस, मांघ, इतवार, सोमवार ।
दिशाओं के नाम– उत्ती (पूर्व), बुड़ती (पश्चिम), भंडार (उत्तर), रक्सहू (दक्षिण ) ।
2- जातिवाचक संज्ञा– जिन संज्ञाओं से एक ही प्रकार की वस्तुओं का बोध हो, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते है।
उदाहरण–
मनुष्य– टूरा, टूरी, भाई, बहन, आदमी, औरत।
पशु– पक्षी– गाय, बइला,घोड़ा, सुआ, मैना, मंजूर ।
वस्तुओं का नाम– घड़ी, कुरसी, किताब, मोबाइल, कम्प्यूटर।
पद या व्यवसाय का नाम– शिक्षक, संतरी, डॉक्टर, लेखक, कवि , चपरासी।
डोली
खेत पहाड़ या नदी जातिवाचक संज्ञा है क्योंकि उससे बहुत सारे कृषि योग्य खेत, पहाड़– दलहा पहार, नीलगिरि या बहुत सारी, नदियों अरपा, पैरी, मनियारी, लीलागर, महानदी आदि का बोध होता है।
3- द्रव्यवाचक संज्ञा–
जिस संज्ञा से नाप तौल
वाली वस्तु का बोध हो उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। इस संज्ञा का सामान्यत– बहुवचन
नहीं होता ।
धातुओं तथा खनिजों के नाम– लोहा
सोना चांदी पीतल कांस्य आदि।
खाने पीने की वस्तुओं का
नाम – पानी
, घी, तेल, चाउंर, गोरस, नून ।
ईंधनों के नाम– मिट्टी
तेल, पेट्रोल, डीजल, कोयला।
अन्य– तेजाब।
4-समूह वाचक संज्ञा– जिस
संज्ञा से वस्तु अथवा व्यकित के समूह का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते है।
व्यक्तियों का समूह– परिवार, सेना, झुण्ड, मेला, कक्षा।
वस्तुओं का समूह– गुच्छा, ढेर।
अन्य समूह– बरदी/ गोहड़ी/ खइरखा
जानवरों का समूह। कोरी (बीस का समूह), हप्ता (सप्ताह – सात दिन
का समूह), साल/ वर्ष (12 महीनों
का समूह)
5-भाववाचक संज्ञा– भाववाचक
संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, विशेषण, क्रिया , सर्वनाम, और अव्यय में प्रत्यय लगाकर होता है। जैसे–
भाववाचक संज्ञा भी विकारी
शब्द है ये प्राय:
तीन
प्रकार के शब्दों से बनती है जैसे–
किेयाओं से – लहुटना
से लहुटई, गोठियाना
से गाठियाई, हरियाना
से हिरयई, सजाना
से सजावट, लिखना
से लिखावट, बुढ़ाना
से बुढ़ापा ।
संज्ञा से – लइका से
लइकाइ्र, लोहा
से लोहइन, तेल
से तेलइन।
विशेषण से– गरम से
गरमी, सरल
से सरलता, मोटा
से मोटई, करू
से करूआसी/ करूआई, अम्मट
से अमटपन/ अमटहा, सियान से
सियानी ।
छत्तीसगढ़ी
सर्वनाम (chhattisgarhi Pronoun)
सर्वनाम-
सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते हैं जो किसी भी संज्ञा के बदले आता
है।
उदाहरण-
दुकालू ह कहिस कि वोहा बजार जावत हे । (”वोहा” सुकालू के स्थान में )
राम ह सुकालू ले पूछिस कि तैं कब अइब/ आबे ?( ”मैं” दुकालू के स्थान में )
राधा बोलिस कि मैं खाना बनावत हौं ।( ”मैं” राधा के स्थान में )
निम्न वाक्यों में मैं, तैं, वोहा (वह) नाम के स्थान में आये हैं इसलिए
सर्वनाम हैं। नाम के स्थान में आने वाले शब्दों को ही सर्वनाम कहते हैं।
हिन्दी के सर्वनाम की जानकारी- मैं, तू, आप, यह, वह, जो, सो, कोई, कुछ, कौन, क्या । छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi) में कुल 10 सर्वनाम होते हैं जो इस प्रकार हैं- मैं, तै,आप, येह, ओह, जउन, कोन्हों, कुछु, कोन, का ।
”सो” का प्रयोग सर्वनाम के रूप में हिन्दी, गद्य में नहीं होता इस कारण छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi) में ” सो” के किसी विकल्प रूप को सर्वनाम नही
माना गया है।
छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi) के सर्वनाम-
छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi) व्याकरण में सर्वनाम की संख्या 10 हैं
मैं-
मैं घर जावत हौं। छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
मैं घर जा रहा हॅूं। (Hindi)
तैं-
तैं खान खा ले छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
तुम खाना खा लो (Hindi)
आप
मैं ये काम ल आपेच कर लूहूँ । छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
मैं यह काम आप ही कर लूंगा (Hindi)
येह-
येह सुघ्घर लड़की आय छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
यह सुंदर लड़की है।(Hindi)
ओह-
ओह गाना गावत हवय ।छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
वह गाना गा रही है। / वह गाना गा रहा है। (Hindi)
जउन-
जउन भी गोठ करना हे,- कर लो भाई छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
जो भी बात करना है- कर ले भाई (Hindi)
कोन्हों-
कोन्हों कुछुच कह लें। छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
कोई कुछ भी कह ले । (Hindi)
कोन-
इहॉं कोन हे, जउन मोला नि जानय ? छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
यहॉं कौन है, जो मुझे नहीं जानता ? (Hindi)
का-
वोह का चाहते हे ? छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
वह क्या चाहता है ? (Hindi)
कुछु-
कुछु तैं पाय, कुछु मैं पॉंय । छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi)
कुछ तुमने पाया, कुछ मैंने पाया (Hindi)
सर्वनाम के भेद-
हिन्दी में सर्वनाम के 6 प्रकार है।उसी प्रकार प्रयोग के आधार
पर एवं अर्थ की दृष्टि से छत्तीसगढ़ी सर्वनाम (chhattisgarhi pronoun) के 6 प्रकार हैं-
- पुरूषवाचक सर्वनाम
- निश्चयवाचक सर्वनाम
- निजवाचक सर्वनाम
- सम्बन्धवाचक सर्वनाम
- अनश्चियवाचक सर्वनाम
- प्रश्नवाचक सर्वनाम
पुरूष वाचक सर्वनाम- पुरूषों, स्त्री के नाम के बदले आते है-
उदाहरण- मैं, हमन, तैं, तुमन, आप, येह, वोह ।
पुरूष वाचक सर्वनाम के प्रकार-
उत्तम पुरूष- बोलने वाले वक्ता मैं, हम, हमन, हम-मन।
वाक्य- मैं इस्कूल जावत हौं।
हमन जगदलपुर जावथन ।
मध्यम पुरूष- सुनने वाले श्रोता केा मध्यम पुरूष
कहते हैं। तैं, तोर , आप आपमन, तुमन।
वाक्य- आप बहुतेच अच्छा हव ।
तैं कहॉं जावत हस ?
अन्य पुरूष- अन्य के सम्बन्ध में बात कही जाए- येहा, वोहा, एखर, ओखर ।
वाक्य- येह समारू के साइकिल आय।
ओम कहॉं जावत हें ?
निज वाचक सर्वनाम-
इसका अर्थ आप होता है। मॅय, आप, स्वयं ।
वाक्य- मैं अपन काम ला आप कर लूहू
तैं अपन काम कर
निश्चयवाचक सर्वनाम-
वक्ता के दूर या पास के भाव के निश्चय का भाव– वोहा , एहा, ओमन, एमन ।
वाक्य- ये आमा ह बहुतेच मीठ हवय ।
येह बने टूरा ए ।
संबंध वाचक सर्वनाम-
वाक्य में किसी दूसरे सर्वनाम से संबंध स्थापित किया जाए। जउन, जइसन, वइसन, जेखर, तेखर, जे, जेन , जौन, ते, तेने, तउन ।
वाक्य- वो टूरी जउन कालि आय रहिस, पढ़े मा कमजोर आय।
जइसन बोइबे, वइसन काटबे ।
अनिश्चयवाचक सर्वनाम-
किसी निश्चित वस्तू का बोध न हो । कोन्हों, कुछु ।
वाक्य- कोन्हों जावत हे ।
कोन्हों तो आही ।
प्रश्न वाचक सर्वनाम-
प्रश्न करने के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग होता है उन्हें प्रश्नवाचक
सर्वनाम कहते हैं। कोन, का , काकर, कहॉं, कती, कोन – मन, काबर, कतका आदि।
वाक्य- कोन जावत हवय ?
एखर का करबे ?
पहचान ? के द्वारा किया सकता है।
छत्तीसगढ़ी सर्वनाम (chhattisgarhi
pronoun) के विकारी रूप।
छत्तीसगढ़ी (chhattisgarhi) में सर्वनाम के अनेक विकारी रूप हैं
जिनका विवरण दिया जा रहा है।
मैं- मोर, मो ला,