गुरू घासीदास अनमोल वचन । Guru Ghasi Das Anmol Vachan

guru ghasidas quotes गुरू घासीदास के अनमोल वचन !गुरु घासीदास के विचार गुरू घासीदास सतनामी धर्म केप्रवर्तक एवं गुरू है उन्‍होंने सामाजिक सेवा एवं उत्‍धान का कार्य किया है उनकेसंदेशों को अनुयायी अपने जीवन में निश्चित रूप से अपनाकर अपनो आप को धन्‍य मानतेहैं। guru ghasi das images इस पोस्‍ट में गुरू धासीदास दास जीके … Read more

बस्‍तर राजा प्रवीरचंद्र भंजदेव बायोग्राफी bastar king praveer chand bhanjdev biography

प्रवीरचंद्र भंजदेव:- बस्‍तर राजा जीवन परिचयbastar king praveer chand bhanjdev biography  प्रवीरचंद्र भंजदेव का जन्‍म एवं परिवार श्री प्रवीरचंद्र भंजदेव का जन्‍म 25जून 1929 को शिलांग में हुआ था। उनकी माता कुमारी देवी बस्‍तर की महारानी थी। जबमहारानी का निधन लंदन में एपेंडीसाइटिस के ऑपरेशन के कारण हुआ। तब ब्रिटिश सरकारने औपचारिक रूप से उन्‍हें गद्दी पर … Read more

पहाड़ी कोरवा जनजाति Pahadi Korva Tribes Detail

 pahadhi korwa छत्तीसगढ़ पहाड़ी कोरवा जनजाति की अद्भूत जानकारी 

 पहाड़ी कोरवा जनजाति: उत्‍पत्ति एवं नामकरण

पहाड़ी कोरवा जनजाति की उत्‍पति क
संबंध में अनेक कहानियां प्रचलन में है। जो इस प्रकार है-



कहानी १

एक बार महादेव और पार्वती ने
जंगल का कुछ हिस्‍सा काट कर जला दिया। जिसे कोटबाई बोली में दाही या दहिया कहते
हैं। दहिया क पश्‍चात उन्‍होंने इस जमीन में धान बोया। धान को जंगली जानवर नष्‍ट न
कर सकें। इस आशय से 
महादेव एवं पार्वती ने एक पुतले की रचना की और उसके हाथ
में तीर और धनुष पकड़ा कर उसे खेत के बीच में प्रस्‍थापित कर दिया। 


इसके पश्‍चात महादेव और पार्वती अपने गन्‍तव्‍य के लिए प्रस्‍थान कर गए। जब ऋतु बदली तब महादेव और पार्वती लौटे और खेत में लहलहाते हुए धान की फसल को देखा तो प्रसन्‍न
हो गए। उन्‍हें इस बात की अधिक प्रस्‍न्‍नता हुई कि धान की फसल को किसी भी जंगली
जानवर ने नुकसान  नहीं पहुचाया है। तब 
महादेवने धान के तैयार फसल को काटा। 


कटाई के पश्‍चात पार्वती ने महादेव से
प्रार्थना की कि वे उस काकभगोड़े को जीवित कर दें। क्‍योकि उसी के कारण धान की फसल
सुरक्षित रह पायी। यह सुनकर महादेव ने कहा अगर वे उस पुतले को जिन्‍दा कर देंगे तो
यह अपने तीर – धनुष से सबको मार कर खा जायेगा। परंतु पार्वती ने 
महादेव की एक
न सुनी और जिद पर अड़ी रही। अंत में शंकर भगवान को बाध्‍य होकर उस माटी के पुतले
में जान फूंकनी पड़ी। जान आते ही वह पुतला जीवित मनुष्‍य के रूप में उनके समक्ष
धनुष एवं बाण लेकर खड़ा हो गया। 


महादेव ने कहा तुमने मेरे खेत और फसल की
जानवरों से रक्षा की है। यह ध्‍वनि करते हुए का-अ-वा-को-र-वा जिसका अर्थ है भागो
करते हुए की है
, इसलिए तुम्‍हें आज से कोरवा नाम से जाना जाएगा। अब तुम जाओ और जंगल में
निवास करो। इस तरह कोरवा नाम की उत्‍पत्ति हुई।



कहानी २

डाल्‍टन ने कोरवाओं के जन्‍म को लेकर
अपनी पुस्‍तक डिस्‍क्रीप्‍टीव इथनोलॉजी ऑफ बंगाल 1872 में एक कथा दी है। जो इस
प्रकार है–

सरगुजा के कोरवाओं के अनुसार इस राज्‍य
मे जो सबसे पहला मानव बसा वह जंगली जानवरों से बहुत ही परेशान था। क्‍योंकि जानवर
उसके दाही खेत को नष्‍ट कर देते थे। उसने जानवरों से अपने खेत को बचाने क लिए मानव
सदृश्‍य एक पुतला बनाकर बीच खेत में रख दिया। हवा बहने से यह पुतला हिलता था और
उससे ध्‍वनि निकलती थी। इससे जानवर डर कर खेत से दूर रहते थे। इस प्रकार उसकी पूरी
फसल नष्‍ट होने से बच गई। 


उस समय एक देवी आत्‍मा उधर से गुजर रहीं थी। उसने उस
डरावने हिलते- डुलते पुतले को देखा। उनके मन में आया कि क्‍यों न इस निर्जिव पुतले
में जान फूंक दी जाय। ऐसा सोच कर उसने उस बदसूरत और खौफनाक दिखने वाले पुतले में
जान फूंक दी। इस तरह देवी आत्‍मा द्वारा जीवित किया हुआ पुतला कोरवाओं का वंशज
बना और यही दाही प्रथा आज भी उनकी खेती के शगुन के रूप में मान्‍य है।

कहानी 3

कुछ पहाड़ी अपनी उत्‍पत्ति राम –
सीता
से मानते हैं। इस संबंध में उनका कहना हे कि बनवास काल में राम
, सीता एवं लक्ष्‍मण
सरगुजा राज में धान के खेत के पास से गुजर रहे थे। उन्‍होंने देखा की पशु-पक्षियों
से फसल की सुरक्षा हेतु एक मानवाकार पुतले को धनुष – बाण पकड़ाकर खेत की मेढ़ पर
खड़ा कर दिया गया है। सीता माता के मन में आया कि क्‍योंन पुतले को जीवित कर दिया
जाए। उन्‍होंने भगवान राम से उस पुतले को जीवन प्रदान कर दिया। यही कोरवा जनजाति का
पूर्वज बना और कोरवा जनजाति यहां के घने वनों में बस गए।

कहानी4

एक अन्‍य मान्‍यता के अनुसार जब शंकर
भगवान के द्वारा सृष्टि का निर्माण किया जा रहा था। उस समय शंकर भगवान ने सृष्टि
निर्माण एवं सृष्टि की सुरक्षा एवं शोभा के लिए मनुष्‍य उत्‍पन्‍न करने का विचार
लेकिर रतनपुर राज्‍य के काला और बाला पर्वतों से मिटटी लेकर दो पुतले बनाए और
उसमें जान फंक दी। काला पर्वत की मिटटी से बने मानव का नाम कइला तथा बाला पर्वत की
मिटटी से बने हुए मानव का नाम घुमा रखा । 



इसके पश्‍चात शंकर भगवान ने दो नारी
मूर्तियों का निर्माण कर उन्‍हें जीवित कर दिया। एक नारी का नाम सिद्धि तथा दूसरे
का नाम बुद्धि रखा। कइला ने सिद्धि  के साथ
विवाह किया जबकि बाला ने बुद्धि के साथ विवाह किया । कइला और सिद्धि से तीन पुत्र हुए।
पहले पुत्र का नाम कोल
,
दूसरे पुत्र का नाम कोरवा तथा तीसरे पुत्र का नाम कोजकू रखा गया।
कोरवा के भी दो पुत्र हुए। एक पुत्र पहाड़ में जाकर जंगलों को कांटकर दिहया खेती
करने लगा
, जो पहाड़ी कोरवा कहलाया। जबकि दूसरा पुत्र जंगल के
नीचे साफ एवं समतल स्‍थान पर हल के द्वारा स्‍थाई कृषि करने लगा। वह डिहारी / डिह
कोरवा
कहलाये।

कोरवा जन‍जाति की सामान्‍य जानकारी–

छत्‍तीसगढ़ आदिम जाति अनुसंधान एवं
प्रशिक्षण संस्‍थान
,
रायपुर द्वारा 2006 में छत्‍तीसगढ़ की 7 आदिम जनजातियों में से कमार,
बैगा, बिरहोर, बिरहोर,
और पहाड़ी कोरवा जनजातियों का सर्वेक्षण किया गया था। जिसके अनुसार-

  • कोरबा जिले में 514 परिवार
  • जशपुर जिले में 2987 परिवार
  • एवं सरगुजा जिले में 4865 परिवार
    निवासरत थे।


पहाड़ी कोरवा जनजाति कहा रहते है अर्थात छत्‍तीसगढ़ के किन जिले में–

जशपुर , सरगुजा, सूरजपुर, बलराम पुर, रायगढ़ ,
कोरिया जिलों में।


विशेष बातें —

  • पहाड़ी कोरवा जनजाति लोग पेड़ों के उपर मचान
    बनाकर रहते हैं।
  • मृत्‍यू संस्‍कार को नवाधानी कहा जाता
    है।
  • विवाह के समय भयानक डांस दमनच करते है।
  • इनकी पंचायत व्‍यवस्‍था को मयारी कहते
    है।
  • अपने शरीर पर आग से दरहा नामक टैटू बनाते
    हैं।
  • पहाड़ी कोरवा का करमा गीत प्रसिद्ध है।

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