रायपुर के कल्‍चुरि वंश का इतिहास raipur kalachuri vansh

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कलचुरी एवं उनका प्रशासन शासन व्‍यवस्‍था

रायपुर के कल्‍चुरि वंश का इतिहास 




14वीं शताब्‍दी ई0 के अंतिम भाग में रतनपुर की कल्‍चुरि
शाखा का दो भागों में विभाजन हो गया। मुख्‍य शाखा रतनपुर में राज करती रही तथा गौण
शाखा ने रायपुर में राज्‍य स्‍थापित किया।


रायपुर के कल्‍चुरि वंश के शासक

बाबू रेवाराम के अनुसार– 15वीं सदी में रतनपुर के कलचुरी
राजा जगन्‍नाथ सिंह के दो पुत्र वीर सिंग दवे एवं देव सिंग देव। ज्‍येष्‍ठ पुत्र
होने के कारण वीर सींग देव को रतनपुर की राजगद्दी मिली और उनके वंशज पीढी दर पीढी
रतनपुर के राजा होते गये। इसी समय राज्‍य का बंटवारा कर दिया गया और छोटे भाई
देवसिंग को रायपुर राज्‍य शिवनाथ नदी का दक्षिण भाग
दिया गया।

किन्‍तु रायपुर में संवत 1458 और खल्‍लारी में विक्रम
संवत 1470
के जो शिलालेख प्राप्‍त हुए हैं उनके अनुसार राय या हरि ब्रह्मदेव को
रायपुर का राजा बताया गया हैं। इन शिलालेखों तथा बाबू रेवाराम के इतिहास के आधार पर
अनुमान लगाया जा सकता है कि रतनपुर के कलचुरि राजवंश में आपसी झगड़े शुरू हुए और
उसी वंश का कोई भाई या चाचा लक्ष्‍मी देव रायपुर मे जाकर बस गया था। लक्ष्‍मीदेव
का लड़का सिंघण हुआ
, जिसने शत्रुओं के 18 गढ़ जीत लिये थे।

 

 

सिंघण का पुत्र रामचंद्र हुआ जिसे रायदेव कहा गया है।
रायदेव का पुत्र ब्रम्‍हदेव हुआ। इसी ब्रम्‍हदेव को शिलालेख में राजा ब्रम्‍हदेव
कहा गयाहै। जबकि बाबु रेवाराम ने अपने इतिहास में सैन्‍यपति तख्‍त ब्रम्‍हदेव राजा
के सेहर रायपुर रहते हैं । उल्‍लेख किया है इसके समय मे सम्‍पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्‍य
का कल्‍युरियों द्वारा पक्‍का बंटवारा हो गया था।

इस तरह रायपुर शाखा की स्‍थापना 14वी श्‍ताब्‍दी के अंत
में हुई। ब्रम्‍हदेव के पूर्वज रामंचद्र ने फणिनागवंश के राजा भोणिक देव को पराजित
किया था।

ब्रम्‍हदेव की राजधानी खल्‍लवाटिका आधुनिक खलारी,
रायपुर
जिला में थी।

ब्रम्‍हदेव के बाद राजाओं के उत्‍कीर्ण लेख नहीं मिलते।
केवल अंतिम रामा अमर सिंह देव का प्रमाण मिलता है। इसके कुछ ही वर्षों के बाद
नागपुर के मराठों के हाथ अमरसिंह का पतन हुआ।

सन् 1750 में अमरसिंह से उसका राज्‍य छीनकर रायपुर,
राजिम
,
पाटन का इलाका उसे दिया गया और 7000 रू वार्षिक टकौली बांध
दी गई। सन् 1753 में राजा अमरसिंह का देहांत हो गया। उस समय उनका पुत्र शिवराज
सिंह
(अंतिम कलचुरी नरेश रायपुर शाखा) तीर्थ यात्रा पर था। अत:उपयुक्‍त इलाके भी
उसके लौटाने के पहले जब्‍त कर लिए गए।

बिम्‍बाजी भोसल के समय महासमुन्‍द तहसील में स्थित
बड़गांव क्षेत्र शिवराज सिंह को माफी में दे दिया गया और यह भी अधिकार दिया
गया  कि वह जिले के प्रत्‍येक गांव से एक
एक रूपया परवरिश के लिए वसूल कर लिया करे। यह व्‍यवस्‍था सन् 1822 तक चालू रही ।
पश्‍चात शिवराजसिहं के पुत्र रघुनाथ सिंह का प्रति गांव एक रूपया क बदले मुरेना
,
नांदगावं
और भालेसर ग्राम
उसके जीवन निर्वाह के लिए माफी में दे दिया गया।

बिंबाजी ने रतनपुर के अंतिम राजा रघुनाथ सिंह के लिए भी
यही व्‍यवस्‍था की थी। इस प्रकार हैहयवंशियों की रतनपुर एंव रायपुरीय शाखा अंत एक
ही स्‍तर पर होगया और छत्तीसगढ़ में मराठों का एक राज्‍य स्‍थापित हो गया।



कनिंघम की रिर्पोट  

कनिंघम की रिपोर्टरायपुर जिला गजेटियर के आधार पर
रायपुर के कलचुरी शासकों की सुची निम्‍न थी-

  • केशवदेव 1420
  • भुवनेश्‍वरदेव1438 
  • मानसिंह1463 
  • संतोष सिंह देव 1478
  • सूरतसिंह देव 1498
  • सम्‍मान सिंहदेव1518
  • चामुण्‍ड
    सिंह देव 1528 
  • बंशीसिंह देव 1563 
  • देव 1582
  • चैतसिंह देव 1603 
  • फत्तेसिंह देव 1615
  • यादवसिंह देव 1633
  • सोमदत्‍तदेव 1650 
  • बलदेवसिहं देव 1663 
  • उमेदसिह1685 
  • देव बनवारी
    सिंह देव 1705 ई0

 इन सोलह राजाओं के पश्‍चात अमरसिंह देव 1741 ई का विवरण प्राप्‍त
होता है जिसका उल्‍लेख उपर किया गया है।

रायपुर के कलचुरि राजाओं द्वारा निर्माण कार्य

रायपुर के कलचुरि राजाओं के कार्यकाल में रायपुर नगर का
विकास हुआ ।यहां पर अनेक तालाब बनाए गये
, बूढातालाब के समीप किला बनाया
गया तथा श्री रामचंद्र जी के मंदिर का विकास किया गया अर्थात श्री दूधाधारी मंदिर
क्षेत्र को तालाब एंव उद्यान के माध्‍यम से दर्शनीय बनाया गया।

रतनपुर एवं रायपुर के कलचुरि राजाओं के कार्यकाल में 18
गढ़ रतनपुर
राज्‍य के एंव 18 गढ़ रायपुर राज्‍य का विकास हुआ
,
अनुक
जमींदारीरयां अपने अपने क्षेत्र में विकास की ओर अग्रसर थीं।

छत्तीसगढ़ पर अन्‍य क्षेत्र का प्रभाव 

छत्तीसगढ़ सीदियों से एकशांत प्रिय क्षेय रहा है यहां पर
बाह्य आक्रमण भी बहुत कम हुए अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों के तथा जहांगीर पुत्र
परवेज
के रतनपुर आगमन की चर्चा होती है वह भी प्रसंग वंश अर्थात दक्षिण या उत्‍कल
जाते समय मार्ग में पड़ने के कारण ।

 

प्रथम बार दिल्‍ली के प्रभाव में छत्तीसगढ़ उस समय आया
जब गाेंडवाना की रानी दुर्गावती की वीरता पूर्ण संघर्ष के बाद
,
उनकी
मृत्‍यु के बाद गोडवाना पर मुगलों का प्रभाव कायम हुआ। छत्तीसगढ़ सीमा स्थित होने
के कारण राजा कल्‍याणसाय को दिलली कुछ वर्षेां के लिए जाना पड़ा। कर देना पड़ा।
सरगुजा में कभी कभी मुस्लिम सेना हाथी पकड़ने के नाम से आती रही। इन प्रसंगों को
यदि अलग कर दें तो कभी भी प्रत्‍यक्ष प्रशासन छत्तीसगढ़ पर सल्‍तनतकालीन या
मुगलकालीन शासकों का नहीं रहा।

मध्‍यकालीन मुस्लिम सत्‍ता की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था से
यह क्षेत्र अप्रभावित रहा। 
छत्तीसगढ़ की संस्‍कृति चित्रोत्‍पला महानदी क अविरल
प्रवाह की तरह संवर्द्धित एवं गतिमान रही।


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