पहाड़ी कोरवा जनजाति pahadi korwa janjati

 पहाड़ी कोरवा जनजाति pahadi korwa janjati

विशेष
तथ्‍य:-



  1. pahadi korwa janjati का निवास स्‍थान जशपुर, सरगुजा,
    सुरजपुर, बलरामपुर, रायगढ़,
    कोरिया जिलों में है।
  2. इनकी
    दो प्रजातियां है:- 1 पहाड़ी कोरवा
    , 2 दिहाड़ी कोरवा
  3. कोरवा
    जनजाति के लोग पेड़ों के ऊपर मचान बनाकर रहते हैं।
  4. मृत
    संस्‍कार को नवाधानी कहते हैं।
  5. क्रियाकर्म
    के समय
    कुमारी भातकी परम्‍परा।
  6. विवाह
    के समय दमनंच नृत्‍य करते हैं।
  7. इनकी
    पंचायत को मयारी कहते हैं।
  8. शरीर
    के आग से दाग का निशान बनाते हैं
    , जिसे दरहाकहते हैं।
  9. pahadi korwa janjati विशेष रूप से कमजोर जनजाति के रूप में जबकि pahadi korwa janjati को सामान्‍य जनजाति
    के रूप में स्‍वीकार किया गया है।

पहाड़ी कोरवा का जनसंख्‍या:-

छत्‍तीसगढ़
आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्‍थान
, रायपुर
द्वारा 2006 में छत्‍तीसगढ़ की पांच आदिम जनजातियों में से -कमार
, बैगा, बिरहोरpahadi korwa janjati का परिवारवार सर्वेक्षण संपन्‍न किया गया था। तद्नुसार pahadi korwa janjati को कोरबा जिले
में 514 परिवार
, जशपुर जिले में, 2987 परिवार
एवं सरगुजा जिले में 4864 परिवार निवासरत् थे।

पहाड़ी
कोरवा का इतिहास: मान्‍यताएंं । उत्‍पत्ति । कहानियां । किवंदिती एवं नामकरण



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  • pahadi korwa janjati की उत्‍पत्ति के संबंध में अनेक किवदंतियां प्रचलन में है। जो निम्‍नानुसार
    हैं- एक बार महादेव और पार्वती ने जंगल का कुछ हिस्‍सा काट कर जला दिया। जिसे
    कोटबई बोली में दाही या दहिया कहते हैं। दहिया के पश्‍चात्  उन्‍होंने इस जमीन में धान बोया। धान को जंगली
    जानवर नष्‍ट न कर सकें इस आशय से महादेव एवं पार्वती ने एक पुतले की रचना की और
    उसके हाथ में तीर और धनुष पकड़ा कर उसे खेत के बीच में प्रस्‍थापित कर दिया। 

    इसके
पश्‍चात महादेव और पार्वती अपने गन्‍तव्‍य के लिए प्रस्‍थान कर गए। जब ऋतु बदली तब
महादेव और पार्वती लौटे और खेत में लहलहाते हुए धान की फसल को देखा तो प्रसन्‍न हो
गए। उन्‍हें इस बात की अधिक प्रसन्‍नता हुई धान की फसल कोकिसी भी जंगली जानवर ने
नुकसान नहीं पहुंचाया है। तब महादेव ने धान के तैयार फसल को काटा। कटाई के पश्‍चात
पार्वती ने महादेव से प्रार्थना की कि वे उस माटी के बने मानुष पुतले में जाना
फूंक दें
,
क्‍योकि उसी के कारण धान की फसल सुरक्षित रह पायी। सुनकर महादेव ने
कहा अगर वे उस पुतले को जिन्‍दा कर देंगे तो यह अपने तीर
धनुष
से सबको मार कर खा जायेगा। परंतु पार्वती ने महादेव की एक न सुनी और जिद पर अड़ी
रही। अंत में महादेव को बाध्‍य होकर उस माटी के पुतले में जान फूकनी पड़ी। 

    जान आते
ही वह पुतला जीवित मनुष्‍य के रूप में उनके समक्ष धनुष एवं बाण लेकर खड़ा हो गया।
महादेव ने कहा- तुमने मेरे खेत और फसल की जानवरों से रक्षा की है। यह ध्‍वनि
करते हुए
का-अ-वा-को-वा जिसका
अर्थ  एक आदमी है …….भागो। करते हुए की है
, इसलिए तुम्‍हें
आज से कोरबा नाम से जाना जाएगा। अब तुम जाओ और जंगल में निवास करो। इस तरह कोरवा
नाम की उत्‍पत्ति हुई।



  • डाल्‍टन
    ने कोरवाओं की उत्‍पत्ति को लेकर अपनी पुस्‍तक में एक कथा दी है
    ,
    जो इस प्रकार हैसरगुजा के कोरवाओं के अनुसार
    इस राज्‍य में जो सबो पहला मानव बसा वह जंगली जानवरों से बहुत ही परेशान था। क्‍योंकि
    जानवर उसके दही खेत को नष्‍ट कर देते थे। उसने जानवरों से अपने खेत हो बचाने के
    लिए मानव सदृश्‍य एक पुतला बनाकर बीच खेत में रखा दिया। 

    हवा बहने से यह पुतला
हितला था और उससे ध्वनि निकलती थी। इससे जानवर डर कर खेत से दूर रहते थे। इस
प्रकार उसकी पूरी फसल नष्‍ट होने से बच गई। उस समय एक देवी आत्‍मा उधर से गुजर
रहीं थी। उसने उस डरावने हिलते-डुलते पुतले को देखा। उनके मन में आया कि क्‍योंकि
न इस नि‍र्जीव पुतले में जान फंक दी जाय। ऐसा सोच कर उसने उस बदसूरत और खौफनाक
दिखने वाले पुतले में जांन फूंक दी। इस तरह देवी आत्‍मा द्वारा जीवित किया हुआ
पुतला कोरवाओं का वंशज बना और यही दाही प्रथा आज भी उनकी खेती के शगुन के रूप में
मान्‍य है।

 

  • कुछ pahadi korwa janjati अपनी उत्‍पत्ति राम-सीता से मानते हैं। इस संबंध में उनका कहना है कि
    बनवास काल में राम
    , सीता एवं लक्ष्मण
    सरगुजा राज में धान के खेत के पास से गुजर रहे थे। उन्‍होंने देखा की पशु-पक्षियों
    से फसल की सुरक्षा हेतु एक मानवाकार पुतले को धनुष-बाण पकड़ाकर खेत की मेढ़ पर
    खड़ा कर दिया गया है। सीता माता के मन में आया कि क्‍यों‍ न पुतले को जीवित कर
    दिया जाए। उन्‍होंने भगवान राम से उस पुतले केा जीवन प्रदान करने को कहा। सीता
    माता के निवेदन को स्‍वीकार करते हुए भगवान राम ने पुतले को जीवन प्रदान कर दिया।
    यह पुतला कोरबा जनजाति का पूर्वज बना और कोरवा जनजाति यहां के घने वनों में बस गए।
  • एक
    अन्‍य मान्‍यता के अनुसार जब शंकर भगवान के द्वारा सृष्टि का निर्माण किया जा रहा
    था। उस समय शंकर भगवान ने सृष्टि निर्माण एवं सृष्टि की सुरक्षा एवं शोभा के लिए
    मनुष्‍य उत्‍पन्‍न करने का विचार लेकर रतनपुर राज्‍य के काला और बाला पर्वतों से
    मिटटी लेकर दो पुतले बनाए और उसमें जान फूंक दी । काला पर्वत की मिटटी से बने मानव
    का नाम कइला तथा बाला पर्वत की मिटटी से बने हुए मानव का नाम घुमा रखा। इसके पश्‍चात्
    शंकर भगवान ने दो नारी मूर्तियों का निर्माण कर उन्‍हें जीवित कर दिया। 

    एक नारी का
नाम सिद्धि तथा दूसरे का नाम बुद्धि रखा। कइला ने सिद्धि से तीन पुत्र हुए। पहले
पुत्र का नाम कोल
, दूसरे पुत्र का नाम
कोरवा तथा तीसरे पुत्र का नाम कोजकू रखा गया। कोरवा के भी दो पुत्र हुए। एक पुत्र
पहाड़ में जाकर जंगलों को कांटकर दहिया खेती करने लगा
, जो
पहाड़ी कोरवा कहलाया। जबकि दूसरा पुत्र जंगल के नीचे साफ एवं समतल स्‍थान पर हल के
द्वारा स्‍थाई कृषि करने लगा। वह डिहारी/डिह कोरवा कहलाया।


पहाड़ी कोरवा Pahadi Korwa Tribal
पहाड़ी कोरवा Pahadi Korwa Tribal 


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