छत्तीसगढ़ में सहकारिता की संरचना तथा वृद्धि तथा कुल साख में उनके हिस्‍से cgpsc mains syllabus

Structure and growth of co-operatives and their shares in total credit, adequacy and problems.

question paper 05 part 01



परिचय

छत्‍तीसगढ़ एक कृषि प्रधान विकासशील
राज्‍य है। राज्‍य के 58.26प्रतिशत लगभग 21.83 लाख किसान सीमांत श्रेणी के जबकि 22.18
प्रतिशत लगभग 8.31 लाख किसान लघु किसान हैं। छत्तीसगढ़ 37.46 लाख कुल किसानों में 80.44प्रतिशत
लगभग 30.14 लाख किसान लघु तथा सीमांत श्रेणी के किसान है। ये किसान लगातार ऋणग्रस्‍तता
के शिकार तथा कृषि में पूंजी निवेश की कमी की समस्‍या से ग्रस्‍त रहते हैं। पूंजी
की कमी के कारण किसान आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपना नहीं पाते है और उनका कृषि
उत्‍पादन तथा उत्‍पादकता दोनों को स्‍तर निम्‍न रह जाता है। कृषि क्षेत्र में
तीव्र वृद्धि दर प्राप्‍त करने के लिए आवश्‍यक है कि किसानों केा आसान ऋण दरों पर
सुविधा पूर्ण ढ़ग से त्रण प्राप्‍त हो
,साथ ही साथ
उनके द्वारा उत्‍पादित उपजों की खरीदी की भी समुचित व्‍यवस्‍था हो।छत्तीसगढ़ में सहकारिता संस्‍थाओं
की इस दिशा में कुछ समस्‍याओं के बावजुद महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है।

कृषि वित्‍त की प्राप्ति के परंपरागत
स्‍त्रोत साहूकार तथा महाजन रहे हैं। परंतु उनसे ऋण लेकर किसान ऋण दुश्‍चक्र में
फंस जाते है
, और गंभींर शोषण्‍ का शिकार बनते हैं । कृषि वित के अन्‍य
गैर संस्‍थागत स्‍त्रोतों के अंतर्गत व्‍यपारियों
, रिश्‍तेदारों, जमीदारों अथवा
आढ़तियों आदि से ऋण प्राप्‍त किया जाता रहा है। गैर संसथागत स्‍त्रोंतों की
कार्यप्रणाली अनिश्चिˆत है। ब्‍याज की दरें अत्‍यधिक उच्‍च है
, तथा
अपरादर्शी
, शोषणपरक कार्यप्रणाली है।

इतिहास

स्‍वतंत्रता के पूर्व साहूकार तथा
महाजन की कृषि वित्‍त प्राप्‍त करने के मुख्‍या स्‍त्रोत थे। पहली पंचवर्षीय योजना
की शुरूवात में महाजनों तथा किसानों से प्राप्‍त कृषि वित की प्रतिशता 71.6 प्रतिशत
थी। चूंकि कृषि वित्‍त प्रदायगी के शासकीय तथा संस्‍थागत ढांचे का विकास नहीं हो
पाया था।
, इसलिए कुछ राज्‍यों में साहूकारी के कार्य के लिए
लाइसेंसिंग तथा रजिस्‍ट्रेशन के कानूनी प्रावधान किये गये
, जिसके
अंतर्गत किसानों को देय ऋणों पर चक्रवृद्धि ब्‍याज वसूलने
, मूलधन के
संबंध में साहूकारों द्वारा झूठे दावे किये जाने तथा राज्‍य से बाहर ऋण देने पर
प्रतिबन्‍ध लगा दिया गया। साहूकारी तथा महाजनी की व्‍यवस्‍था का कानूनी विनियमन
करके किसानों के शोषण को रोकने
, की कोशिश की गई।

आजादी के पूर्व तथा बाद के वर्षों
में भी संसथागत कृषि वित्‍त के स्‍त्रोतों को विकास धीमी गति से हुआ है। सहकारी
समितियों
, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, व्‍यापारिक
बैंक
, संस्‍थागत वित्‍त के प्रमुख स्‍त्रोत हैं।

आजादी के पूर्व ही सहकारी ऋण
समितियों की स्‍थापना कुछ क्षेत्रों में हो चुकी थी परंतु कृषि वित्‍त प्रदान करने
में इनकी हिस्‍सेदारी अत्‍यंत सीमित थी।

1951 में कुल कृषि वित्‍त में सहकारी
समितियों का योगदान मात्र 3.1 प्रतिशत था। सहकारी समितियों सहित संस्‍थागत वित्‍त
के स्‍त्रोतों द्वारा प्रदत्त कृषि वित्‍त की वृद्धि की दरें बहुत धीमी गति से बढ़
रही थी। पंरतु 1969 में 14 बड़े बैंकों तथा 1980 में 6 अन्‍य बड़े बैंकों के राष्‍ट्रीयकरण
के पश्‍चात कृषि वित्‍त की प्राप्ति थोड़ी सुविधाजनक हुई। कृषि वित्‍त की आसान
पहुंच उपलब्‍ध कराने के लिए 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्‍थापना तथा 1982
में नाबार्ड की स्‍थापना बहुत महत्‍वपूर्ण साबित हुई।

राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सहकरिता

राष्‍ट्रीय स्‍तर पर संस्‍थागत वित्‍त
के स्‍त्रोतों पर विकास करने के परिणाम स्‍वरूप
, गैर संस्‍थागत
स्‍त्रोतों का हिस्‍सा जो 1951 में 92.7 प्रतिशत था
, 1991 में घटकर 30.6 प्रतिशत
मात्र हो गया। महाजनों का कृषि वित्‍त में हिस्‍सा जो 1951 में 71.6 प्रतिशत था
, 1991 में घटकर
मात्र 17.5 प्रतिशत हो गया
, जबकि कृषि वित्‍त में संस्‍थागत स्‍त्रोतों का हिस्‍स जो
1951 में मात्र 7.3 था
, 1991 में बढ़कर 66.3प्रतिशत हो गया। कृषि हेतु आसान कृषि वित्‍त
उपलब्‍ध कराने की वी0एस0व्‍यास समिति की सिफारिशों को रिजर्व बैंक ने स्‍वीकार
किया
, जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्राथमिकता
क्षेत्र को‍ दिये जाने वाले ऋण में 18 प्रतिशत कृषि हेतु ऋण दिये जाने का प्रावधान
किया गया।




सहकारी समितियों द्वारा  ऋण

राष्‍ट्रीय स्‍तर के समानन्‍तर ही
छत्तीसगढ़ में कृषि वित्‍त के संस्‍थागत स्‍त्रोतां के रूप में सहकारी समितियों
का विकास हुआ है। सहकारी समितियों द्वारा तीन श्रेणियों में ऋण प्रदान किये जाते
हैं।

अल्‍पकालिक ऋण– 15 महिने से कम अवधि
के लिए होते हैं तथा किसानों के बीज
, उर्वरक, पशु,चारा, आदि आवश्‍यकताओं
की पूर्ति के लिए प्रदान किये जाते हैं।

मध्‍यम कालिक ऋण-इस ऋण की समयावधि 15
महिने से 5 वर्ष के बीच होती है
, खेतों के कृषि सुधार कार्य करने, कृषि उपकरण
खरीदने
, तथा पशुओं की खरीददारी हेतु ये ऋण प्रदान किये जाते हैं।

दीर्घकालिक ऋण– इस ऋण की कालावधि 5
वर्ष से अधिक होती है। खेतों में स्‍थायी सरंरचनात्‍मक सुधार
, नये खेत
खरीदने
, अथवा महंगी मशीनों की खरीदी से ऋण प्रदान किये जाते हैं।
सहकारी समितियों की राज्‍य में त्रिस्‍तरीय संरचना है। सबसे निचले स्‍तर पर
प्राथमिक कृषि साख समिमियां है
, जिला स्‍तर पर जिला केन्‍द्रीय सहकारी बैंक तथा सबसे उपर
राज्‍य सहकारी बैंक है।


आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में
सहकारिता 

प्रदेश में कुल 1333 प्राथमिक कृषि
साख सहकारी समितियां कार्यरत
हैं जिसमें 475 लैम्‍पस 858 पैक्‍स हैं।

अल्‍पकालिन कृषि साख संरचना के माध्‍यम
से कृषकों को ऋण वितरण

राज्‍य शासन द्वारा कृषकों के आर्थिक
हितों के संवर्धन हेतु कृषि के ब्‍याज दर में लगातार कमी की गई है। वर्षवार कृषकों
केा दिये गये कृषि ऋण पर प्रचलित ब्‍याज दर निम्‍नानुसार है-

2012-13 से 2013-14 तक 1%

2014-15
ka 2019-2020 —- 0%

क- ऋण व्‍यवसाय प्रदेश में 1333
प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां संचालित हैं इन समितियों में 20 .96 लाख कृषक
सदस्‍य हैं। सहकारि समितियों के माध्‍यम से कृषकों को कृषि एवं उससे सन्‍बद्ध
कार्य हेतु रियायती दरों पर उपब्‍लध कराया जाता है जो निम्‍नानुसार है-

1.अल्‍पकालीन कृषि ऋण-कृषकों को अल्‍पकालिन
कृषि प्रयोजन हेतु दिये जाने वाला ऋण ब्‍याज मुक्‍त 0 प्रतिशत दर होता हैा ऋण की
अधिकतम सीमारूपये 5लाख है तथा फसल ऋण में नगद एवं वस्‍तु का अनुपात 60.4
0 है।

2. गौपालन हेतु ऋण-रूपये 2 लाख तक का
ऋण 1 प्रतिशत दर एवं रूपये 2 लाख से 3 लाख तक के ऋण 3 प्रतिशत ब्‍याज दर  परदिया जाता है।

3. म्‍त्‍स्‍य पालन एवं उद्यानिकी कार्यों
हेतु ऋण-
रूपये 1 लाख तक का ऋण 1 प्रतिशत ब्‍याज दर पर एवं रूपये 1 लाख से अधिक एवं
रूपये 3 लाख तक के ऋण 3 प्रतिशत ब्‍याज दर पर दिया जाता है।

उक्‍त प्रकार के ऋणों को रियायती दर पर
किसानों को उपलब्‍ध कराने के लिए राज्‍य शासन द्वारा सहकारी समितियों को ब्‍याज अनुदान
की राशि उपलब्‍ध कराई जाती है।

ख- कृषकों को ब्‍याज मुक्‍त ऋण- कृषकों
को प्राथमिक कृषि साख सहकारि समितियों के माध्‍यम  से दिनांक 01.04.2014 से ब्‍याज मुक्‍त अल्‍पकालीन
कृषि ऋण उपलब्‍ध कराया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ राज्‍य सहकारी विपणन संघ

क- धान उपार्जन :- राज्‍य शासन द्वारा
समर्थन मूल्‍य पर कृषकों से धान उपार्जन हेतु छत्तीसगढ़ राज्‍य सहकारि विपणन संघ मर्यादित
, रायपुर को नोडल ऐजेंसी बनाया गया है। विपणन संघ द्वारा प्रवेश
में कार्यरथ कुल 1333 प्राथमिक कृषि साख समितियों के माध्‍यम से धान उपार्जन किया जा
रहा है। सभी धान उपार्जन केन्‍द्र कम्‍प्‍यूटराईज है।



ख- रासा‍यनिक उर्वरक का वितरण प्रदेश
में 1333 सहकारी समितियों के माध्‍यम से कृषकों को रासायनिक उवर्रक का वितरण किया जाता
है।

2020-21, 1 अप्रैल 2020 से 30 सितम्‍बर
2020  वितरण लक्ष्‍य 635000 वितरण 718417

 
सहकारिता विभाग एवं सहकारि संस्‍थाओं
के माध्‍यम से किये जाने वाले अन्‍य महत्‍वपूर्ण कार्य

1 इथेनॉल प्‍लांट की स्‍थापना

क- मां महामाया सहकारी शक्‍कर कारखाना
मर्यादित अंबिकापुर ग्राम केरता जिला सुरजपुर में सह उत्‍पाद मोलासिस से इथेनॉल बनाने
के लिए प्रस्‍तावित 20
klpdइथेनाल प्‍लांट
हेतु वीएसआई पुणे से डीटेल्‍ड प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट तैयार करा लिया गया है।

ख- भोरमदेव सहकारि शक्‍कर उत्‍पादक कारखाना
कवर्धा
में 40
klpd क्षमता के ईथेनॉल प्‍लॉट ppp (public private parternship) मोड पर स्‍थापित करने हेतु कारखाना एवं छत्‍तीसगढ़ डिस्‍लरी के मध्‍य माननीय
मुख्‍यमंत्री महोदय के उपसिथति में
mou निष्‍पादित किया जा चुका
है। यथाशीघ्र प्‍लांट स्‍थापना की कार्यवाही की जा रही है।

 

शक्‍कर कारखाने में 6 मेगावॉट को -जनरेशन पावर प्‍लांट – मां महामाया
सहकारी शक्‍कर
कारखाना मर्यादित अंबिकापुर ग्राम केरता जिला सूरजपुर में 6 मेगावॉट
को -जनरेशन पावर प्‍लांट स्‍थापना हेतु राज्‍य शासन से 2 करोड़ 2 लाख अंशपूंजी के रूप
से स्‍वीकृति किया गया है स्‍थापना की कार्यवाही प्रक्रियाधीन है।

 

प्राथमिक कृषि साख सहकारि समिति पुनर्गठन योजना 2019 के तहत प्रदेश
में 725 नवीन समितियों का गठन किया गया है। प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारि समितियों
की कुल संख्‍या 2058
हो गई है। नई समितियों के अस्तित्‍व में आने से किसानों केा सीधे
तौर पर फायदा मिलना शुरू हो जायेगा। समितियों में शामिल गांवों और किसान संख्‍या कम
हो जायेगी। धान खरीदी पूर्व पंजीयन
;
बीमा, केसीसी प्रकरणों की स्‍वीकृति, खाद बीज के वितरण सहित धान खरीदी के समय जमा होने वाली भीड़ आने जाने में दूरी
कम हो  जायेगी
, जिससे
किसानों को समय बचत की सुविधा मिलेगी।



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